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सोमवार, 18 अप्रैल 2011

गर्मियों में सबसे बड़ा खतरा लू


 लू
गर्मियों में सबसे बड़ा खतरा लू लगने का होता है। इससे बचाव ही इसका उपचार है। खाली पेट न रहें। पानी अधिक पिएँ। सिर में टोपी पहनें, कान बंद रखें। ककड़ी, प्याज, मौसंबी, मूली, बरबटी, दही, मठा, पुदीना, चना का उपयोग करें। धूप से आकर तुरन्त पानी पीना, नहाना खतरनाक है। मौसम का तापमान बढ़ने से शरीर का संतुलन बिगड़ जाता है। इस बिगाड़ का शरीर पर आंतरिक दुष्प्रभाव है लू। तेज बुखार, बेचैनी, असहनीय सिर दर्द, पेशाब न होना, शरीर में जलन, मुँह और गले में सूखापन, तीव्र अवस्था में बेहोशी इसके मुख्य लक्षण हैं। अगर लू लग ही जाए तो होम्योपैथी में इसके असरकारी उपाय हैं। 

होम्योपैथी उपचा 
नैट्रम म्यूर-200- 
शरीर में पानी की व्यवस्था कायम रखना ही इस दवा का काम है। पानी कम होने पर मुँह सूखना, सिर दर्द, चक्कर आना, बुखार, बेहोशी आदि में 5 गोली हर एक घंटे में दें, जब तक कि आराम न हो। रोकथाम के लिए दिन में दो खुराक काफी है। धूप में काम करने वाले मजदूर लोगों के लिए यह दवा अमूल्य है। 

अलियम सेप्पा-200 
शरीर के तापमान की स्थिति बनाए रखना ही इस दवा का मुख्य काम है। रोकथाम के लिए 5 गोली दिन में 2 बार लें। लू लगने पर जैसे तेज बुखार, शरीर में जलन, बेहोशी आदि में 5 गोली हर एक घंटे में दें, जब तक तकलीफ कम न हो। 

नेट्रम म्यूर, अलियम सेप्पा 200 की उक्त खुराक के अलावा अन्य बीमारियाँ होने पर ग्लोनाइन 200, 

रविवार, 3 अप्रैल 2011

नेट से हो खून की जांच, तो इंफेक्शन का खतरा नहीं

नेट से हो खून की जांच, तो इंफेक्शन का खतरा नहीं

 खून की जांच के लिए अगर न्यूक्लिक एसिड टेस्ट (नेट) का इस्तेमाल किया जाए तो एचआईवी, हेपटाइटिस बी व सी के वायरस का बेहद कम वक्त में पता लगाया जा सकता है। अभी खून जांच के लिए परंपरागत एलिजा टेस्ट अपनाया जाता है।
इस टेस्ट में वायरस का पता लगाने में 6 सप्ताह से 6 साल तक लग जाते हैं, जबकि नेट के जरिए इस तरह के वायरस का पता केवल चार दिन में लग जाता है। एलिजा के साथ-साथ अगर नेट टेस्ट की सुविधा सभी अस्पतालों में मुहैया होने लगे तो खून चढ़ाने के दौरान इंफेक्शन का खतरा न के बराबर रह जाएगा। अभी तक देश में अपोलो अस्पताल और बेंगलूर के रोटरी के ब्लड बैंक में ही नेट टेस्ट की सुविधा है। टेस्ट को वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन में भी मान्यता दी है।

अमेरिका सहित कई यूरोपियन देशों ने इस टेस्ट को अपने सभी अस्पतालों में अनिवार्य कर दिया है। पूरी दुनिया में नेट टेस्ट की किट मुहैया कराने वाली कैरोन कंपनी ने अब भारत में हेमोजनोमिक्स के साथ मिलकर इस टेस्ट के प्रति लोगों को जागरूक करने का बीड़ा उठाया हैं।
जागरुकता कार्यक्रम के दौरान अस्पतालों के सर्जन, केंद्र और राज्य सरकारों के सरकारी अस्पतालों, ब्लड बैंकों के इंचार्ज व टेक्रीशियनों को जागरूक किया जाएगा। कैरोन के सीनियर मेडिकल डायरेक्टर डेबिड निकोल्स व एशिया पसिफिक की रीजनल मार्केटिंग मैनेजर बेंडी बाओ के मुताबिक सरकारी व प्राइवेट अस्पतालों में नेट टेस्टिंग के लिए वह केंद्र व राज्यों सरकारों के स्वास्थ्य मंत्रालयों से बातचीत कर रही हैं।
नाको भी अपने प्रोग्राम-३ के एजेंडा में नेट टेस्ट शामिल करने जा रहा है। भारत में कैरोन के इंडिया बिजनेस मैनेजर अजय कुमार भट्ट और हेमोजेनोमिक्स के अध्यक्ष सुमित बगेरिया के मुताबिक परंपरागत तरीके से टेस्ट किए गए खून की एक बोतल की कीमत जहां 600-900 रूपये के बीच पड़ती है, वहीं नेट टेस्ट वाले खून की बोतल की कीमत 1200-1500 रूपये के बीच होती है। लेकिन इस टेस्ट से खून चढ़ाते वक्त होने वाले इंफेक्शन का खतरा न के बराबर रह जाएगा। भारत में 2212 ब्लड बैंक हैं और उनमें से केवल दो जगह ही इस टेस्ट की सुविधा है।
वहीं अपोलो अस्पताल में ब्लड बैंक के हेड डॉ. आर. एन. मखरू का कहना है कि अस्पताल में अब तक 20 हजार से ज्यादा यूनिट ब्लड की नेट टेस्टिंग हो चुकी है। अस्पताल में सारा खून इसी टेस्टिंग के जरिए चढ़ाया जाता है। दरअसल शरीर में किसी भी तरह का इंफेक्शन होने पर एंटी बॉडीज बन जाती हैं।
अगर परंपरागत तरीके से टेस्ट किया जाता है तो टेस्ट नेगेटिव आता है क्योंकि वायरस के पैदा होने का पता इस टेस्ट में नहीं चल पाता, जबकि नेट टेस्ट में सीधे वायरस की जानकारी मिल जाती है। लोगों को खतरनाक बीमारियों से बचाने के लिए इस टेस्ट को पूरे देश में अनिवार्य किया जाना चाहिए।

लप्रोस्कोपिक सर्जरी

आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में आज नित नए अविष्कार हो रहे हैं, उसी आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की सर्जरी के क्षेत्र में आधुनिकतम देन है लप्रोस्कोपिक सर्जरी, जिन रोगों के कारण पहले इलाज के अभाव में आमजन को काफी मुसीबतों का सामना करना पड़ता था, आज उन्हीं तकलीफों से लप्रोस्कोपिक सर्जरी की सहायता से कुछ ही घंटों में छुटकारा पाया जा सकता है। साधारण पुराने तरीके की खुली सर्जरी को छोड़ समझदार लोग व सर्जन लप्रोस्कोपिक सर्जरी ही अपना रहे हैं। लप्रोस्कोपिक सर्जरी द्वारा जहां पेट की अंदरुनी बीमारियों को आसानी से खोजा जा सकता है वहीं बड़े चीरे की अपेक्षा मामूली से चीरे द्वारा ही बड़े से बड़े आपरेशन किए जा सकते हैं। इस विधि में सभी गतिवविधियों को टीवी स्क्रीन पर देखकर कार्य को अंजाम दिया जाता है। इस आधुनिक विधि से जहां आसानी से, पित्त की थैली की पथरी, बच्चेदानी एवं रसौली का आपरेशन, अपेंडिक्स एवं हरनियां, गदूद के आपरेशन, निसंतान की जांच आदि आसानी से संभव है।
वहीं दूसरी और लप्रोस्कोपिक सर्जरी में मरीज को दर्द भी नहीं सहन करना पड़ता एवं आपरेशन के दौरान खून की भी अत्यंत कम मात्रा में आवश्यकता पड़ती है एवं इस दौरान दवाओं की भी कम मात्रा में आवश्यकता पड़ती है।
साधारण सर्जरी से जहां लप्रोस्कोपिक सर्जरी कुल मिलाकर सस्ती पड़ती है, वहीं इसमें साधारण सर्जरी से होने वाले दुष्प्रभाव जैसे हर्नियां, आदि भी लप्रोस्कोपिक सर्जरी के दौरान नहीं होते। लप्रोस्कोपिक सर्जरी के साथ-साथ जो मुद्दा अहम है वह है कि सर्जरी करने वाला सर्जन भी अनुभवी होना अति आवश्यक है एवं सर्जन द्वारा सर्जरी के दौरान व्यवहार में लाई जाने वाली लप्रोस्कोपिक मशीन भी अति आधुनिक एवं अच्छी कंपनी द्वारा निर्मित होनी चाहिए तभी शत प्रतिशत सफलता मिलनी निश्चित होगी।