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रविवार, 3 अप्रैल 2011

नेट से हो खून की जांच, तो इंफेक्शन का खतरा नहीं

नेट से हो खून की जांच, तो इंफेक्शन का खतरा नहीं

 खून की जांच के लिए अगर न्यूक्लिक एसिड टेस्ट (नेट) का इस्तेमाल किया जाए तो एचआईवी, हेपटाइटिस बी व सी के वायरस का बेहद कम वक्त में पता लगाया जा सकता है। अभी खून जांच के लिए परंपरागत एलिजा टेस्ट अपनाया जाता है।
इस टेस्ट में वायरस का पता लगाने में 6 सप्ताह से 6 साल तक लग जाते हैं, जबकि नेट के जरिए इस तरह के वायरस का पता केवल चार दिन में लग जाता है। एलिजा के साथ-साथ अगर नेट टेस्ट की सुविधा सभी अस्पतालों में मुहैया होने लगे तो खून चढ़ाने के दौरान इंफेक्शन का खतरा न के बराबर रह जाएगा। अभी तक देश में अपोलो अस्पताल और बेंगलूर के रोटरी के ब्लड बैंक में ही नेट टेस्ट की सुविधा है। टेस्ट को वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन में भी मान्यता दी है।

अमेरिका सहित कई यूरोपियन देशों ने इस टेस्ट को अपने सभी अस्पतालों में अनिवार्य कर दिया है। पूरी दुनिया में नेट टेस्ट की किट मुहैया कराने वाली कैरोन कंपनी ने अब भारत में हेमोजनोमिक्स के साथ मिलकर इस टेस्ट के प्रति लोगों को जागरूक करने का बीड़ा उठाया हैं।
जागरुकता कार्यक्रम के दौरान अस्पतालों के सर्जन, केंद्र और राज्य सरकारों के सरकारी अस्पतालों, ब्लड बैंकों के इंचार्ज व टेक्रीशियनों को जागरूक किया जाएगा। कैरोन के सीनियर मेडिकल डायरेक्टर डेबिड निकोल्स व एशिया पसिफिक की रीजनल मार्केटिंग मैनेजर बेंडी बाओ के मुताबिक सरकारी व प्राइवेट अस्पतालों में नेट टेस्टिंग के लिए वह केंद्र व राज्यों सरकारों के स्वास्थ्य मंत्रालयों से बातचीत कर रही हैं।
नाको भी अपने प्रोग्राम-३ के एजेंडा में नेट टेस्ट शामिल करने जा रहा है। भारत में कैरोन के इंडिया बिजनेस मैनेजर अजय कुमार भट्ट और हेमोजेनोमिक्स के अध्यक्ष सुमित बगेरिया के मुताबिक परंपरागत तरीके से टेस्ट किए गए खून की एक बोतल की कीमत जहां 600-900 रूपये के बीच पड़ती है, वहीं नेट टेस्ट वाले खून की बोतल की कीमत 1200-1500 रूपये के बीच होती है। लेकिन इस टेस्ट से खून चढ़ाते वक्त होने वाले इंफेक्शन का खतरा न के बराबर रह जाएगा। भारत में 2212 ब्लड बैंक हैं और उनमें से केवल दो जगह ही इस टेस्ट की सुविधा है।
वहीं अपोलो अस्पताल में ब्लड बैंक के हेड डॉ. आर. एन. मखरू का कहना है कि अस्पताल में अब तक 20 हजार से ज्यादा यूनिट ब्लड की नेट टेस्टिंग हो चुकी है। अस्पताल में सारा खून इसी टेस्टिंग के जरिए चढ़ाया जाता है। दरअसल शरीर में किसी भी तरह का इंफेक्शन होने पर एंटी बॉडीज बन जाती हैं।
अगर परंपरागत तरीके से टेस्ट किया जाता है तो टेस्ट नेगेटिव आता है क्योंकि वायरस के पैदा होने का पता इस टेस्ट में नहीं चल पाता, जबकि नेट टेस्ट में सीधे वायरस की जानकारी मिल जाती है। लोगों को खतरनाक बीमारियों से बचाने के लिए इस टेस्ट को पूरे देश में अनिवार्य किया जाना चाहिए।

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