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शनिवार, 5 फ़रवरी 2011

दमा का प्राकृतिक उपचार

दमा का प्राकृतिक उपचार
दमा के प्राकृतिक उपचार में निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं-
सुस्ती या कमजोर निर्गमन अंगों को बल प्रदान करना। रोगी पदार्थों को शरीर से बाहर निकालने के लिए समुचित आहार कार्यक्रम अपनाना। शरीर का पुनर्निमाण करना अथवा शरीर की कमजोरी को दूर करना। योगासन और प्राणायाम का अभ्यास करना, ताकि भोजन ठीक तरह से हजम होकर शरीर को लगे। फेफड़ों को बल मिले, उनमें लचीलापन आए, पाचन क्रिया सुधरे और तेज हो तथा श्वास प्रणाली बलशाली हो। रोगी को एनीमा देकर उसकी आँतों की सफाई करना चाहिए, ताकि उनके भीतर विसंगति न पनप सके। पेट पर गीली पट्टी रखने से बिना पचे हुए खाद्य पदार्थ सड़ नहीं पाएँगे और आँतों की क्रिया तेज होने के कारण, जल्दी ही पानी में भीगा कपड़ा रखने से फेफड़ों की जकड़न कम होती है और उन्हें बल मिलता है। रोगी को भाप, स्नान कराकर उसका पसीना बहाया जा सकता है। इसके अतिरिक्त उसे गरम पानी में कूल्हों तक या पाँव डालकर बैठाया जा सकता है और धूप स्नान भी करवाया जा सकता है। इससे त्वचा उत्तेजित होगी और उसे बल मिलेगा तथा फेफड़ों की जकड़न दूर होगी।
अपने शरीर की प्रणाली को पोषक तत्त्व प्रदान करने के लिए और हानिकारक तत्त्व बाहर निकालने के लिए रोगी को कुछ दिन तक ताजे फलों का रस ही लेना चाहिए, और कुछ नहीं। इस उपचार के दौरान उसे ताजा फलों के एक गिलास रस में उतना ही पानी मिलाकर दो-दो घंटे के बाद सुबह आठ बजे से शाम आठ बजे तक लेना चाहिए। बाद में धीरे-धीरे ठोस पदार्थ भी शामिल किए जा सकते हैं। किंतु रोगी को सामान्य किस्म की भोजन संबंधी गलतियों से दूर रहना चाहिए। यदि उसके आहार में कार्बोहाइड्रेट चिकनाई एवं प्रोटीन जैसे तेजाब बनाने वाले पदार्थ सीमित मात्रा में रहें और ताजे फल, हरी सब्जियाँ तथा अंकुरित चने जैसे क्षारीय खाद्य पदार्थ भरपूर मात्रा में रहें तो सबसे अच्छा रहता है।
चावल, शक्कर, तिल और दही जैसे कफ या बलगम बनाने वाले पदार्थ तथा तले हुए एवं गरिष्ठ खाद्य पदार्थ न ही खाए जाएँ तो अच्छा है।
अस्थमा के रोगियों को अपनी क्षमता से कम ही खाना चाहिए। उन्हें धीरे-धीरे और अपने भोजन को चबा-चबाकर खाना चाहिए। उन्हें प्रतिदिन कम से कम आठ से दस गिलास पानी पीना चाहिए। भोजन के साथ पानी या किसी तरह का तरल पदार्थ लेने से परहेज करना चाहिए। तेज मसाले, मिर्च अचार बहुत अधिक चाय कॉफी इत्यादि से भी दूर रहना चाहिए।
दमा, विशेषकर तेज दमे का दौरा, हाजमे को खराब करता है। ऐसे मामलों में रोगी पर खाने के लिए जोर मत दीजिए, ऐसे मामलों में जब तक दमे का दौरा दूर न हो जाए तब तक रोगी को लगभग उपवास करने दीजिए। रोगी हर दो घंटे के बाद एक प्याला गरम पानी पी सकता है। ऐसे मामले में यदि रोगी एनीमा लेता है तो उसे बहुत फायदा होता है।

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